आखिरकार आज वो पौधा हाथ लग ही गया, जिसके इस्तेमाल से जहरीला सांप दूर भाग जाता है | देखे पूरी हकीकत!

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972

: वन्य जीवों के संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा कुछ नियमों को इस अधिनियम द्वारा पारित किया। यह अधिनियम वन्य पशुओं, पक्षियों एवं पौधों के संरक्षण के लिए लागू किया गया। यह अधिनियम 9 सितम्बर 1972 में लागू किया गया तथा यह आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश एवं पश्चिमी बंगाल पर लागू किया गया। वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 को सितम्बर 1978 में राज्यों में लागू किया गया।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 का उद्देश्य

वन्य जीवों व पक्षियों के शिकार का नियमन व नियंत्रण करना।

राष्ट्रीय वन्य अभयारण्य व उपवनों की स्थापना करना।

राज्यों को सलाह देने के लिए वन्य जीव सलाहकार मण्डल का गठन करना।

वन्य जीवों के अर्जन, आधिपत्य व हस्तांतरण संबंधी व उनकी खाल से संबंधित वस्तुओं के व्यापार पर नियंत्रण करना।

वन्य जीवों के चमड़े से निर्मित वस्तुओं से संबंधित व्यापार पर नियंत्रण करना।

अधिनियम का उल्लंघन या इसके विरुद्ध कार्य करने पर दण्ड का प्रावधान करना।

वन्य जीवों के शिकार पर रोक व प्रतिबन्ध लगाना।

विशिष्ट वनस्पतियों का संरक्षण करना।

चिड़ियाघर के कर्मचारियों व अधिकारियों को चिड़ियाघर पर नियंत्रण व बंदी प्रजनन पर नियंत्रण करने के लिए अधिक अधिकार प्रदान करना।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 : सजा

इस अधिनियम का उल्लंघन करने वाले दोषी व्यक्ति को 6 माह से 7 वर्ष का कारावास एवं 500 रूपये से 5000 रूपये का आर्थिक दण्ड या दोनों प्रकार का दण्ड दिया जा सकता है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के परिणाम

इस अधिनियम के कारण ही भारत में अनेक राष्ट्रीय उद्यान व वन्य जीव अभ्यारण्यों की स्थापना की गई है, इसके परिणामस्वरूप विलुप्ति के कगार पर पहुँचे वन्य जीवों के विलुप्त होने पर रोक लगी है तथा उन्हें संरक्षण प्राप्त हुआ है तथा यह पर्यावरण के असंतुलन को रोकने में कारगर सिद्ध हुआ है।

कृपया ध्यान दें इस वीडियो में किसी भी प्राणी या सर्प को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया है ।हम लोगों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए सांप की जान बचाया । यह वीडियो इंसानों को सांपों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से बनाया गया है । इस वीडियो के माध्यम से यह बताया गया कि यदि हम सांपों को नुकसान ना पहुंचाएं तो वह हमें जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे । अतः आप लोगों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आपको जहां कहीं भी किसी भी तरह का सर्प दिखाई दे कृपया आप उसे मारे नहीं । अपने निकटतम सर्प मित्र से संपर्क करके उन्हें सुरक्षित जंगल में छुड़वाने का कष्ट करें । धन्यवाद । यदि वीडियो जानकारी पूरे लगे तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
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The Indian cobra (Naja naja), also known as the spectacled cobra, Asian cobra, or binocellate cobra, is a species of the genus Naja found, in India, Pakistan, Bangladesh, Sri Lanka, Nepal, and Bhutan, and a member of the "big four" species that inflict the most snakebites on humans in India.[4][5] It is distinct from the king cobra which belongs to the monotypic genus Ophiophagus. The Indian cobra is revered in Indian mythology and culture, and is often seen with snake charmers. It is now protected in India under the Indian Wildlife Protection Act (1972).
Kingdom:AnimaliaPhylum:ChordataClass:ReptiliaOrder:SquamataSuborder:SerpentesFamily:ElapidaeGenus:NajaSpecies

The Indian cobra is classified under the genus Naja of the family Elapidae. The genus was first described by Josephus Nicolaus Laurenti in 1768.[7] The species Naja naja was first described by the Swedish physician, zoologist, and botanist Carl Linnaeus in 1758.[2][8] The genus Naja was split into several subgenera based on various factors, including morphology, diet, and habitat. Naja naja is part of the subgenus Naja, along with all the other species of Asiatic cobras, including Naja kaouthia, Naja siamensis, Naja sputatrix, and the rest. Naja naja is considered to be the prototypical cobra species within the subgenus Naja, and within the entire genus Naja. All Asiatic species of Naja were considered conspecific with Naja naja until the 1990s, often as subspecies thereof. Many of the subspecies were later found to be artificial or composites. This causes much potential confusion when interpreting older literature.[9]

The Indian cobra[10][11] or spectacled cobra,[4] being common in South Asia, is referred to by a number of local names deriving from the root of Nag (नाग) (Hindi, Marathi)
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REPTILES
Mots-clés
nag nagin, nag nagin ka Joda, pair of cobras

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